नई दिल्ली: महारत्न स्टील अथाॅरिटी आॅफ इण्डिया लिमिटेड (सेल) ने प्रतिष्ठित गोल्डन पीकाॅक पर्यावरण प्रबंधन पुरस्कार 2011 प्राप्त किया है।पर्यावरण प्रबंधन में सेल की पहल और उपलब्धियों की मान्यतास्वरूप यह पुरस्कार राजधानी में 24 जून, 2011 कोे आयोजित एक भव्य समारोह में केन्द्रीय गृहमंत्री श्री पी चिदंबरम ने प्रदान किया।
इंस्टीट्यूट आॅफ डायरेक्टर्स, नई दिल्ली द्वारा स्थापित गोल्डन पीकाॅक पुरस्कार हर वर्ष विभिन्न श्रेणियों में दिया जाता है। वर्ष 2011 के लिए गोल्डन पीकाॅक पुरस्कार विजेताओं का चयन भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और सदस्य, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती के नेतृत्व में एक निर्णायक मंडल ने किया।पुरस्कार पर्यावरण प्रबंधन की 13वीं वल्र्ड कांग्रेस के अवसर पर प्रदान किये गये।
सेल अध्यक्ष श्री सी. एस. वर्मा ने ‘निगमित सस्टेनेबिलिटी हेतु पर्यावरण पहल‘ विषय पर पैनल परिचर्चा के दौरान बोलते हुए कहा कि इस्पात उद्योग ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और बेहतर सतत प्रविधियों को प्राप्त करने के लिए ‘समन्वित प्रयास कर रहा है और बहुआयामी रणनीति अपना रहा है‘। इस दिशा में सेल की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि विगत 4 वर्षों में कंपनी पर्टीकुलेट उत्सर्जन में 52 प्रतिशत, विशिष्ट जल खपत में 11 प्रतिशत और विशिष्ट ऊर्जा खपत में 5 प्रतिशत कमी करने एवं ठोस अपशिष्ट पदार्थ उपयोग में 18 प्रतिशत वृद्धि करने में सफल रही है।
सेल निरन्तर पर्यावरण प्रबंधन एवं संरक्षण के क्षेत्र में कारगर उपाय कर रहा है। सेल की निगमित पर्यावरण प्रबंधन नीति में भी बल दिया गया है कि ‘कंपनी लागू विनियमों का पालन करते हुए और उससे आगे बढ़ कर, पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी रहते हुए अपना प्रचालन करेगी‘। राष्ट्रीय पर्यावरण नीति के अनुसार, कंपनी ने आईएसओ 14001 के तहत प्रमाण पत्र प्राप्त करने समेत, पुनः पर्यावरण संरक्षण हेतु अपने विभिन्न कारखानों एवं इकाइयों में एक प्रबंधन प्रणाली गठित की है। उत्पादन एवं सेवा विभागों दोनों को शामिल करते हुए, सेल की सभी इकाइयां आईएसओ 14001 प्रमाणित हैं। इसके अलावा भिलाई, राउरकेला और सेलम इस्पात कारखानों की इस्पात नगरियां भी आईएसओ 14001 प्रमाणित हैं।
अपने कारखानों में एवं आस-पास के आवासीय क्षेत्र में पर्यावरण सुधारने के लिए, सेल ने वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रणालियों, कचरा उपचार संयंत्रों, ठोस अपशिष्ट पदार्थों के पुनः उपयोग एवं स्वच्छ व पर्यावरण अनुकूल टेक्नोलाॅजियो को अपनाने के लिए नियमित रखरखाव एवं निरन्तर प्रचालन जैसे क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ प्रयास किये हैं। समन्वित प्रयासों की परिणति संसाधन संरक्षण, नियामक अपेक्षाओं का अनुपालन, अपशिष्ट पदार्थ में कटौती, हरियाली में वृद्धि इत्यादि में हुई है। सेल ने इस्पात निर्माण से जुडे़ अपशिष्ट पदार्थ का प्रबंधन करने के लिए स्रोत पर संरक्षण, रिकवरी एवं पुनः प्रचलन समेत प्रभावी रूप से अपशिष्ट पदार्थ कम करने की रणनीतियों को अपनाया है।
हाल ही में, सेल के भिलाई इस्पात कारखाने ने ‘जीरो कचरा डिस्चार्ज‘ लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अंदरूनी संसाधनों का उपयोग करते हुए लगभग ृ41 करोड़ की लागत से 30 मिलियन लीटर प्रतिदिन क्षमता के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना की है। इस योजना से भविष्य में भिलाई की विस्तार योजनाओं के लिए अतिरिक्त जल जरूरत हेतु छत्तीसगढ़ सरकार के जल संसाधन विभाग पर निर्भरता कम होने की आशा है। 30 मिलियन लीटर प्रतिदिन उपचारित जल का औद्योगिक उपयोग के लिए पुनः प्रचलन करने से अनुमानित रूप से प्रति वर्ष ृ3.94 करोड़ की बचत होगी।
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के ओजोन प्रकोष्ठ एवं यूएनडीपी के साथ मिलकर, सेल ने अपने छह इस्पात कारखानों में क्लीनिंग साल्वेंट के रूप में प्रयोग में लाये जा रहे कार्बन टेट्राक्लोराइड (सीटीसी) की जगह ट्राईक्लोरोथिलीन (टीसीई) का उपयोग करने के लिए एक प्रमुख परियोजना पर काम शुरू किया है। इस परियोजना का उद्देश्य स्टोरेज टैंक्स, इलेक्ट्रिक मोटर्स, सिलेंडर्स, पाइपिंग इत्यादि की सफाई करने के लिए इन चयनित इकाइयों के आॅक्सीजन संयत्रों और इलेक्ट्रिकल रिपेयर शाॅप्स में उपयोग किये जा रहे 268 मीट्रिक टन सीटीसी (लगभग) के उपयोग को समाप्त करना है।
कंपनी ने अपने सभी कारखानों एवं खानों में वायु एवं ध्वनि प्रदूषण को समाहित करने हेतु सिंक्स विकसित करने के लिए गहन वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाये हैं। स्थापना से लेकर अब तक सेल के कारखानों एवं खानों में 17.5 मिलियन से अधिक पेड़ लगा लिये गये हंै। 21वीं शताब्दी के सतत विकास के पर्यावरण एजेंडे से कदम मिलाते हुए, सेल ने 2010 तक पांच वर्ष की अवधि के दौरान डीग्रेडिड पर्यावरण प्रणालियों को पुनः कायम करने के लिए बनाई गई एक योजना पर लगभग ृ90 लाख खर्च किये। इस योजना के तहत, पूर्णापानी में लाइमस्टोन खनन किये गये 154.42 एकड़, काल्टा में लौह अयस्क खनन किये गये 11.36 एकड़ और बरसुआ में लौह अयस्क खनन किये गये 27.79 एकड़ क्षेत्र को पुनः कायम किया गया। इस योजना के तहत पूर्णापानी में 222,376 पौधे, बरसुआ में 24,000 पौधे और काल्टा में 12,000 पौधे लगाये गये। इन क्षेत्रों में अब पेड़ों से घनी हरियाली दिखाई दे रही है। इन तीनों क्षेत्रों में पौधे उगाने के लिए नर्सरियां विकसित की गई हैं।इसके अलावा, पूर्णापानी में पांच बेकार पड़ी खदानों को पानी से भरकर मछली पालन किया जा रहा है। इसके लिए प्रमुख रूप से काटला, रोहु और मृगल जैसी मछली की प्रजाति की 8 लाख फिंगरलिग्स छोड़ी गई हैं। इस परियोजना कंे अंतर्गत पूर्णापानी में एक स्वचालित सोलर मीट्रियोलाॅजिकल स्टेशन स्थापित किया गया है ।